सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति के विवाद में ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। मंगलवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अपने 8-1 के बहुमत के फैसले में स्पष्ट किया कि सरकार सभी निजी संपत्तियों का अपने उपयोग में नहीं ला सकती, जब तक कि उसमें स्पष्ट रूप से सार्वजनिक हित शामिल न हो।
इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 39(बी) का हवाला देते हुए कहा कि सभी निजी संपत्तियों को “समुदाय के भौतिक संसाधनों” का हिस्सा नहीं माना जा सकता। अदालत ने कहा कि राज्य केवल उन संसाधनों पर दावा कर सकता है जो सामुदायिक हित के लिए होते हैं। कोर्ट ने कहा, “हर निजी संपत्ति को सार्वजनिक संपत्ति नहीं कहा जा सकता।”
इस फैसले में कोर्ट ने 1978 में न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी संपत्तियों को सरकार सामुदायिक संपत्ति घोषित कर सकती है, जिससे एक समाजवादी आर्थिक ढांचा उभर सके। कोर्ट ने इसे अब टिकाऊ नहीं माना और कहा कि वर्तमान आर्थिक परिवेश में इस दृष्टिकोण को अपनाना सही नहीं है।
अनुच्छेद 39 (बी) का नया दृष्टिकोण
सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी सोच के उस पुराने सिद्धांत को पलटते हुए कहा कि अनुच्छेद 39(बी) के तहत राज्य केवल सार्वजनिक भलाई और सामुदायिक हित में ही संपत्ति का अधिग्रहण कर सकता है, और सभी निजी संपत्तियों पर अधिकार नहीं जता सकता। अदालत ने जोर देकर कहा कि 1960 और 70 के दशक में भारत में समाजवादी नीतियों का पालन किया गया था, लेकिन 1990 के दशक के बाद से वैश्वीकरण के चलते भारत का ध्यान बाजार-आधारित अर्थव्यवस्था की ओर अधिक हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भारत में निजी संपत्तियों के अधिकारों को मजबूत करता है और राज्य के लिए नए दिशा-निर्देश प्रदान करता है कि किस प्रकार की संपत्तियों को सार्वजनिक हित में अधिग्रहित किया जा सकता है।